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कामायनी जयशंकर प्रसाद

By: Material type: TextTextPublication details: नई दिल्ली वाणी प्रकाशन 2007 Description: 126pISBN:
  • 8181436196
Subject(s): DDC classification:
  • 21st ed. H 891.4315 PRA/K
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Hindi Books Hindi Books NFLIC-FRI Library On Shelf Fiction H 891.4315 PRA/K (Browse shelf(Opens below)) Available 46953

'कामायनी' जयशंकर प्रसाद की और सम्भवत: छायावाद युग की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है। प्रौढ़ता के बिन्दु पर पहुँचे हुए कवि की यह अन्यतम रचना है। इसे प्रसाद के सम्पूर्ण चिंतन- मनन का प्रतिफलन कहना अधिक उचित होगा। इसका प्रकाशन 1936 ई. में हुआ था। हिन्दी साहित्य में तुलसीदास की 'रामचरितमानस' के बाद हिन्दी का दूसरा अनुपम महाकाव्य 'कामायनी' को माना जाता है। यह 'छायावादी युग' का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। इसे छायावाद का 'उपनिषद' भी कहा जाता है। 'कामायनी' के नायक मनु और श्रद्धा हैं।'कामायनी' एक विशिष्ट शैली का महाकाव्य है। उसका गौरव उसके युगबोध, परिपुष्ट चिंतन, महत उद्देश्य और प्रौढ़ शिल्प में निहित है। उसमें प्राचीन महाकाव्यों का सा वर्णनात्मक विस्तार नहीं है पर सर्वत्र कवि की गहन अनुभूति के दर्शन होते हैं। यह भी स्वीकार करना होगा कि उसमें गीतितत्त्व प्रमुखता पा गये हैं। मनोविकार अतयंत सूक्ष्म होते हैं। उन्हें मूर्त रूप देने में प्रसाद ने जो सफलता पायी है वह उनके अभिव्यक्ति कौशल की परिचायक है। कहीं- कहीं भावपूर्ण प्रकाशन में सम्भव है, सफल न हों, पर शिल्प की प्रौढ़ता 'कामायनी' का प्रमुख गुण है। प्रतीक भण्डार इतना समृद्ध है कि अनेक स्थलों पर कवि चित्र निर्मित कर देता है। इस दृष्टि से श्रद्धा का रूप- वर्णन सुन्दर है। लज्जा जैसे सूक्ष्म भावों के प्रकाशन में 'कामायनी' में प्रसाद के चिंतन- मनन को सहज ही देखा जा सकता है। इसे हम भाव और अनुभूति दोनों दृष्टियों से छायावाद की पूर्ण अभिव्यक्ति कह सकते हैं।

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